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धवला पुस्तक 13
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सिद्धों के आठ गुण होते हैं। उनमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा चार गुण मिलाने पर बारह गुण माने गये हैं। 301
अकसायमवेदत्तं अकारयत्तं विदेहदा चेव । अचलत्तमले पत्तं च होति अच्चतियाई से ।।31।। अकषायत्व, अवेदत्व, अकारकत्व, देहराहित्य, अचलत्व, अलेपत्व, ये सिद्धों के आत्यन्तिक गुण होते हैं। 31 ।।
ध्यान के आलम्बन
आलंबणेहि भरियो लोगो ज्झाइदुमणस्स खवगस्स । जं जं मणसा पेच्छइ तं तं आलंबणं होई । 1 32 ।।
यह लोक ध्यान के आलम्बनों से भरा हुआ है। ध्यान में मन लगाने वाला क्षपक मन से जिस-जिस वस्तु को देखता है वह वह वस्तु ध्यान का आलम्बन होती है। 1321
सुणिउणमणाइणिहणं भूदहिदं भूदभावणमणग्धं । अमिदमजिदं महत्थं महाणुभावं महाविसयं । 133 11 ज्झाएज्जो णिरवज्जं जिणाणमाणं जगप्पईवाणं । अणिउणजणदुण्णेयं णयभंगपमाणगमगहणं ।।34।।
जो सुनिपुण है, अनादिनिधन है, जगत् के जीवों का हित करने वाली है, जगत् के जीवों द्वारा सेवित है, अमूल्य है, अमित है, अजित है, महान् अर्थवाली है, महानुभाव है, महान् विषयवाली है, निरवद्य है, अनिपुण जनों के लिये दुर्ज्ञेय है और नयभंगों तथा प्रमाणागम से गहन है, ऐसी जग के प्रदीप स्वरूप जिन भगवान् की आज्ञा का ध्यान करना चाहिये।।33-34।।
तत्थ मइदुब्बलेण य तव्विज्जाइरियविरहिदो वा वि। णेयगहणत्तणेण य णाणावरणादिएणं च ॥35॥