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धवला उद्धरण
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जो स्थान श्वापद, स्त्री, पशु, नपुंसक और कुशील जनों से रहित हो और जो निर्जन हो, यतिजनों को विशेषरूप से ध्यान के समय ऐसा ही स्थान उचित माना है।।17।। थिरकयजोगाणं पुण मुणीण झाणेसु णिच्चलमणाणं। गामम्मि जणाइण्णे सुण्णे रण्णे य ण विसेसो।।18।।
परन्तु जिन्होंने अपने योगों को स्थिर कर लिया है और जिसका मन ध्यान में निश्चल है ऐसे मुनियों के लिये मनुष्यों से व्याप्त ग्राम में और शून्य जंगल में कोई अन्तर नहीं है।।18।। कालो वि सो च्चिय जहिं जोगसमाहाणमुत्तमं लहइ। ण उ दिवसणिसावेलादिणियमणं ज्झाइणो समए।।19।।
काल भी वही योग्य है जिसमें उत्तम रीति से योग का समाधान प्राप्त होता है। ध्यान करने वाले के लिए दिन, रात्रि और वेला आदि रूप से समय में किसी प्रकार का नियमन नहीं किया जा सकता।।19।।
तो देसकालचेट्ठाणियमो झाणस्स पत्थि समयम्मि। जोगाण समाहाणं जह होइ तहा पयइयव्वं ।।20।।
ध्यान के समय में देश, काल और चेष्टा का भी कोई नियम नहीं है। तत्त्वतः जिस तरह योगों को समाधान हो उस तरह प्रवृत्ति करनी चाहिये।।20।
धर्म्य ध्यान के आलम्बन आलंबणाणि वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेहाओ। सामाइयादियाई सव्वं आवासयाई च।।21।।
वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और सामायिक आदि सब आवश्यक कार्य, ये सब ध्यान के आलम्बन हैं।।21।।