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धवला उद्धरण
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ग्रहण करता है, एक पाद उसके जानकार पुरुषों की सेवा से प्राप्त होता है तथा एक पाद समयानुसार परिपाक को प्राप्त होता है।।4।।
एयक्खोत्तोगाढ सव्वपदे सेहि कम्मणो जो ग्ग। बंधइ जहुत्तहेदू सादियमहणादियं वा वि।।1।।
सूक्ष्म निगोद जीव का शरीर घनांगुल के असंख्यातवें भागमात्र जघन्य अवगाहन का क्षेत्र एक क्षेत्र कहा जाता है। उस एक क्षेत्र में अवगाह को प्राप्त व कर्मस्वरूप परिणमन के योग्य सादि अथवा अनादि पुद्गल द्रव्य को जीव यथोक्त मिथ्यादर्शनादिक हेतुओं से संयुक्त होकर समस्त आत्मप्रदेशों के द्वारा बाँधता है।।1।।
भावों की बंध में विशेषता ओदइया बंधयरा उवसम-खय-मिस्सया य मोक्खयरा। परिणामिओ दु भावो करणोहयवज्जियो होदि।।2।।
औदयिक भाव बन्ध के कारण और औपशमिक, क्षायिक व मिश्र भाव मोक्ष के कारण हैं। पारिणामिक भाव बन्ध व मोक्ष दोनों के ही कारण नहीं है।।2।। एए छज्ज समाणा दोण्णि य संझक्खरा सरा अट्ठ। अण्णोण्णस्स परोप्परमुसूति सव्वे समावेसं।।3।।
यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अ, आ, इ, ई, उ और ऊ ये छह स्वर और ए व ओ, ये दो सन्ध्यक्षर, इस प्रकार ये सब आठ स्वर परस्पर आदेश को प्राप्त होते हैं।।3।।
बन्ध के कारण जोगा पयडि-पदेसे ट्ठिदि-अणुभागे कसायदो कुणदि।।4।। योग प्रकृति व प्रदेश को तथा कषाय स्थिति व अनुभाग को