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धवला पुस्तक 9
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कि वह मिथ्या ही हो, ऐसा हमारे यहाँ एकान्त नहीं है, किन्तु परस्पर की अपेक्षा न रखने वाले नय मिथ्या हैं तथा परस्पर की अपेक्षा रखने वाले वे वास्तव में अभीष्ट सिद्धि के कारण हैं।।61।।
नयोपनये कान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः । अविभानड्मावसम्बन्धो द्रव्ये मकमनेकधा ।।62 ।। नय एकान्त और उपनय एकान्त का विषयभूत त्रिकालवर्ती पर्यायों का अभिन्न सत्ता-सम्बन्ध रूप समुदाय द्रव्य कहलाता है। वह द्रव्य कथंचित् एक और कथंचित् अनेक है। 162 ||
एयदवियम्मि जे अत्थपज्जया बयणपज्जया चावि । तीदाणागदभूदा तावदियं तं हवइ दव्वं ।163।। एक द्रव्य में जितनी अतीत व अनागत अर्थ पर्याय और व्यञ्जन पर्याय होती हैं उतने मात्र वह द्रव्य होता है। 1631
मुख्यता और गोणता
धर्मे धर्मेऽन्य एवार्थो धर्मिणोऽनन्तधर्म्मणः । अंगित्वे ऽन्यतमान्तस्य शेषान्तानां तद्गता ।।64 ।। अनन्त धर्म युक्त धर्मों के प्रत्येक धर्म में अन्य ही प्रयोजन होता है। सब धर्मों में किसी एक धर्म के अंगी होने पर शेष धर्म अंग होते हैं। 164।।
निक्षेप का वर्गीकरण
णामं ठवणा दवियं ति एस दव्वट्ठियस्स णिक्खेवो । भावो दु पज्जवट्ठियपरूवणा एस परमट्ठो ।165।। नाम, स्थापना और द्रव्य ये तीन द्रव्यार्थिक नय के निक्षेप हैं, किन्तु भाव पर्यायार्थिक नय का निक्षेप है, यह परमार्थ सत्य है।1651