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धवला पुस्तक 9
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भगवान् का मोक्ष कल्याणक
वासाणूणत्तीस पंच य मासे य वीसदिवसे य। चउविह अणगारेहि बारहहि गणेहि विहरतो ।।35।। पच्छा पावाणयरे कत्तियमासे यकिण्हचो हसिए । सादीए रत्तीए से सरयं छेत्तु णिव्वाओ ।।36।। भगवान् महावीर उनतीस वर्ष, पाँच मास और बीस दिन चार प्रकार के अनगारों व बारह गणों के साथ विहार करते हुए पश्चात् पावानगर में कार्तिक मास में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को स्वाति नक्षत्र में रात्रि को शेष रज अर्थात् अघातिया कर्मों को नष्ट करके मुक्त हुए । 135-36।।
चतुर्थ काल की समाप्ति में शेष समय
एवं केवलकालो परुविदो ।
परिणिव्वुदे जिणेदे चउत्थकालस्स जं भवे सेसं । वासाणि तिण्णि मासा अट्ठ य दिवसा विण्णरसा ।।37।। महावीर जिनेन्द्र के मुक्त होने पर चतुर्थ काल का जो शेष है वह तीन वर्ष, आठ मास और पन्द्रह दिन प्रमाण है । 1371
गणधर देव की ऋद्धियाँ
बुद्धि-तव- विउवणोसह - रस - बल - अक्खीण- सुस्सरत्तादी । ओहि-मणपज्जवेहि य हवंति गणवालय सहिया । 38 ॥
गणधर देव बुद्धि, तप, विक्रिया, औषध, रस, बल, अक्षीण, सुस्वरत्वादि ऋद्धियों तथा अवधि एवं मन:पर्यय ज्ञान से सहित होते हैं।।38।।
पंचैव अस्थिकाया छज्जीवणिकाया महव्वया पंच। अट्ठ य पवयणमादा सहेउओ बंध - मोक्खो य ॥39॥