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धवला पुस्तक 9
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ओगाहणा जहण्णा णियमा दु सुहुमणिगोदजीवस्स । जदेही तद्देही जहण्णिया खेत्तदो ओही ।। 4 ।। नियम से सूक्ष्म निगोद जीव की जितनी जघन्य अवगाहना होती है उतना क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अवधि है ।। 4 ।।
देशावधि के काण्डकों का क्षेत्र एवं काल अंगुलमावलियाए भागमसंखेज्ज दो वि संखेज्जा । अंगुलमावलियंतो आवलियं चांगुलपुधत्त ||5|| देशावधि के उन्नीस काण्डकों में से प्रथम काण्डक में जघन्य क्षेत्र घनांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और जघन्य काल आवली के असंख्यातवे भाग प्रमाण है। इसी काण्डक में उत्कृष्ट क्षेत्र घनांगुल के संख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट काल आवली के संख्यातवें भाग प्रमाण है। द्वितीय काण्डक में क्षेत्र घनांगुल प्रमाण और काल कुछ कम आवली प्रमाण है। तृतीय काण्डक में क्षेत्र घनांगुलपृथक्त्व और काल पूर्ण आवली प्रमाण है।।5।
आवलियपुधत्तं पुण हत्थो तह गाउअं मुहुत्तं तो । जोयण भिण्णमुहुर्त दिवसतो पण्णुवीसं तु ।।6।।
चतुर्थ काण्डक में काल आवलिपृथक्त्व और क्षेत्र एक हाथ प्रमाण है। पंचम काण्डक में क्षेत्र गव्यूति अर्थात् एक कोरा तथा काल अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। छठे काण्डक में क्षेत्र एक योजन और काल भिन्न मुहूर्त अर्थात् एक समय कम मुहूर्त प्रमाण है। सप्तम काण्डक में काल कुछ कम एक दिवस और क्षेत्र पच्चीस योजन प्रमाण है ||6||
भरहम्मि अद्धमासो साहियमासो वि जंबुदीवम्मि । वासं च मणुअलोए वासपुधत्तं च रुजगम्मि।।7।। अष्टम काण्डक में क्षेत्र भरत क्षेत्र और काल अर्ध मास प्रमाण है।