________________
धवला उद्धरण
सत्तेताल धुवाओ तित्थयराहार - आउचत्तारि । चडवण्णं पयडीओ बज्झति णिरंतरं सव्वा ।।14।।
सैतालीस ध्रुव प्रकृतियाँ, तीर्थकर, आहारक शरीर, आहारक शरीरांगोपांग और चार आयु, ये सब चौवन प्रकृतियाँ निरन्तर बंधती हैं।।14।।
158
प्रकृतिबंध के प्रकार
गाणंतरायदयं दंसण णव मिच्छ सोलस कसाया । भयकम्म दुगुच्छा वि य तेजा कम्मं च वण्णचदू ।।15।। अगुरुअलहु-उवघादं णिमिणं णामं च होंति सगदाल । बंधो चउवियप्पो धुवबंधीणं पयडिबंधो ।।16।।
ज्ञानावरण और अंतराय की दश, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भयकर्म, जुगुप्सा, तैजस और कार्मण शरीर, वर्णादिक चार, अगुरुलघु, उपघात और निर्माण नामकर्म, ये सैंतालीस ध्रुव बन्धी प्रकृतियाँ हैं। इनका प्रकृति बन्ध सादि, अनादि, ध्रुव एवं अध्रुव रूप से चार प्रकार का होता है ।।15-16।।
सान्तर बन्ध वाली प्रकृतियाँ
इत्थि-णउंसयवेदा जाइचउक्कं असाद - णिरयदुगं । आदाउज्जो वारइ - सोगासुह - पंचसं ठाणा ।।17।। पंचासुहसंघडणा विहायगइ अप्पसत्थिया अण्णं । थावर - सुहुमासुहदस चोत्तीसिह सांतरा बंधा ।।18।।
स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, जाति चार, असातावेदनीय, नरकगति, नरकगति प्रायोग्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अरति, शोक, अशुभ पाँच संस्थान, पाँच अशुभ संहनन, अप्रशस्त विहायोगति तथा स्थावर, सूक्ष्म एवं अशुभ आदि अन्य दश, इस प्रकार ये चौंतीस प्रकृतियाँ यहाँ सान्तर बन्ध वाली