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धवला उद्धरण
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हैं।।39।।
एक्कारस छ सत्त य एक्कारस दस य णवय अठेव। पण पंच पंच तिण्णि य दुदु दु दु एगो य समयगणा।।40।।
मिथ्यादृष्टि गुणस्थानों में क्रमशः ग्यारह, छह, सात, ग्यारह, दश, नौ, आठ, पाँच, पाँच, पाँच, तीन, दो, दो, दो, दो और एक, इतने एक समय सम्बन्धी प्ररूपणा के विकल्प होते हैं। 11, 6, 7, 11, 10, 9, 8,5,5, 5,3,2,2, 2, 2,1 ।।40।।
शुभ लेश्याओं के भंग दो हो य तिण्णि तेऊ तिण्णि तिया होति पम्मलेस्साए। दो तिग दुगं च समया बोद्धव्वा सुक्कलेस्साए।।41।।
तेजोलेश्या के दो, दो और तीन समय भंग होते हैं। पद्म लेश्या के तीन त्रिक अर्थात् तीन, तीन और तीन समय भंग होते हैं तथा शुक्ल लेश्या के दो, तीन और दो समय भंग होते हैं, ऐसा जानना चाहिए।।41।।
नित्य निगोदिया जीव अत्थि अणंता जीवा जेहि ण पत्तो तसाण परिणामो। भावकलंकइपउरा णिगोदवासं ण मुंचंति ।।42।।
ऐसे अनन्तानन्त जीव हैं जिन्होंने त्रसों की पर्याय अभी तक नहीं पाई है और जो दूषित भावों को अति प्रचुरता के कारण कभी भी निगोद के वास को नहीं छोड़ते हैं।।42।।।
एयणिगो दसरीरे जीवा दव्वप्पमाणदो दिठा। सिद्धेहि अणंतगुणा सव्वेण वितीदकालेण ।।43।।
एक निगोद शरीर में द्रव्य प्रमाण से जीव सिद्धों से तथा समस्त अतीत काल के समयों से अनन्त गुणे देखे गये हैं।।43।।