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धवला पुस्तक 4
हुए, किन्तु आसन्न अर्थात् जीव के प्रदेशों के साथ जिनका एकक्षेत्रावगाह है तथा जिनका आकार अनिर्दिष्ट अर्थात् कहा नहीं जा सकता है, इस प्रकार का पुद्गल द्रव्य बहुलता से ग्रहण को प्राप्त होता है || 201
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गहणसमयम्हि जीवो उप्पादेदि हु गुणसपच्चयदो । जीवेहि अनंतगुणं कम्म पदेसेसु सव्वे सु ।। 21 ।। कर्मग्रहण के समय में जीव अपने गुणांश प्रत्ययों से, अर्थात् स्वयोग्य बंधकारणों से, जीवों से अनन्तगुणे कर्मों को अपने सर्व प्रदेशों में उत्पादन करता है।।21।
सव्वे वि पोग्गला खलु एगे भुत्तुज्झिदा हु जीवेण । असई अनंतखुत्तो पोग्गलपरियट्टसं सारे ।।22।। इस जीव ने इस पुद्गल परिवर्तनरूप संसार में एक-एक करके पुनः पुनः अनन्त बार सम्पूर्ण पुद्गल भोग करके छोड़े हैं । 22 ।।
क्षेत्र परिवर्तन
सव्वम्हि लोगखेत्ते कमसो तण्णत्थि जण्ण ओच्छुण्णं । ओगाहणाओ बहुसो हिंडतो कालसंसारे । 12311 इस समस्त लोकरूप क्षेत्र में एक प्रदेश भी ऐसा नहीं है, जिसे कि क्षेत्र परिवर्तनरूप संसार में क्रमशः भ्रमण करते हुए बहुत बार नाना अवगाहनाओं से इस जीव ने न छुआ हो।। 23।।
काल परिवर्तन
ओसप्पिणि- उस्सप्पिणि-समयावलिया णिरंतरा सव्वा । जादो मुदो य बहुसो हिंडतो कालसंसारे ।। 24।। काल परिवर्तनरूप संसार में भ्रमण करता हुआ यह जीव उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के सर्व समयों की आवलियों में निरन्तर बहुत बार