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धवला उद्धरण
जानना चाहिए।।8।।
मुह-तलसमास-अद्धं वुस्सेधगुणं गुणं च वेधेण । घणगणिदं जाणेज्जो वेत्तासणसंठिये खेत्ते ॥१॥
मुखभाग और तलभाग के प्रमाण को जोड़कर आधा करो, पुनः उसे उत्सेध से गुणा करो, पुनः मोटाई से गुणा करो। ऐसा करने पर वेत्रासन आकार से स्थित अधोलोकरूप क्षेत्र का घनफल जानना चाहिए।9।
मूलं मज्झेण गुणं मुहसहिदद्धमुस्से धकदिगुणिदं । घणगणिदं जाणेज्जो मुइंगसंठाणखेत्तम्हि ।।10।।
मूल के प्रमाण को मध्य के प्रमाण से गुणा करो, पुनः मुखसहित अर्ध भाग को उत्सेध की कृति अर्थात् वर्ग से गुणा करो। ऐसा करने पर मृदंग के आकार वाले क्षेत्र में प्राप्त घनफल जानना चाहिये ।।10।।
समुद्घात के प्रकार
वेदण-कसाय-वेडव्वियओ य मरणंतिओ समुग्धादो । तेजाहारो छट्ठो सत्तमओ केवलीणं तु ।।11।। वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, वैक्रियिक समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात और केवली समुद्घात इस प्रकार समुद्घात सात प्रकार का है।।11।।
द्वीन्द्रिय आदि की उत्कृष्ट अवगाहना
संखो पुण बारह जोयणाणि गोम्ही भव तिकोसं तु । भमरो जोयणमेगं मच्छो पुण जोयणसहस्सो ।।12।।
शंख नामक द्वीन्द्रिय जीव बारह योजन की अवगाहना वाला होता है। गोम्ही नामक त्रीन्द्रिय जीव तीन कोस की अवगाहना वाला होता है। भ्रमर नामक चतुरिन्द्रिय जीव एक योजन की अवगाहना वाला होता है और