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७०. उठ आया ज्वार
ज्ञान के उस महासिन्धु में
उठ आया ज्वार संभल गई पतवार
इतने में हो गया प्रकाश महासिन्धु में उदित हुआ रवि का आकार
अनन्त ज्ञान-अनन्त दर्शन अनन्त आचार अन्तर जगत की रेखाओं को कौंध क्षण भर में कर्म सब रौंध उदित हुआ जीवन का भानु जीवन पथ पाथेय मिला आत्म ज्ञान मणि फूल खिला शान्त और अभिशान्त हृदय में प्राणों का महाप्राणों से गठ बन्धन अनगिन तारों से
हुआ है एकाकार उठा आया है ज्वार.....
हे मेरे महाप्रभु.....
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