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४०. प्रभु का प्रतिबिम्ब
मेरे प्रभो ! मेरे विभो !
मेरे अनन्त गुण सम्पन्न - आत्मदेव
अनन्त की अनन्त सरिता मेरे अन्तर
को प्रवहमान कर रही हैं
कल-कल करती धारा,
समस्त कषायों को धो रही है
प्रभु चरणों से नि: : सृत मन्दाकिनी
शान्त गति से बह रही है सारस की पंक्तियाँ उड़ रही हैं सारिकाएँ माधुर्य बिखेर रही हैं कपोतों के जोड़े केलि मग्र हैं झिलमिल करता प्रभु का प्रतिबिम्ब हृदय के कण-कण को
प्रकाशित कर रहा है। हे मेरे आत्मदेव !