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१८. सरोवर की सैर
मेरे प्रभो ! मेरे विभो ! मेरे भगवन् ! युग-युगों से मानव सत्य की खोज कर रहा है
शाश्वत सत्य, प्रभु तेरा ही अंग है
सत्य पर ही यह सृष्टि टिकी हुई है
मेरे प्रभो, मेरे विभो
चारों ओर प्रकाश छा रहा है
सत्य रूपी उद्योत छन-छन कर आ रहा है
आज आनन्द रस का पान करेंगे।
प्रभुवर का गुणगान करेंगे ।। अभी अमृत की वर्षा होने वाली है मानसरोवर की छटा निराली है हंस उड़ रहे हैं मयूर केलि कर रहे हैं वायु
में मस्ती छाई हुई है
ऐसे में प्रभु हम तुम एक नाव पर बैठकर सरोवर की सैर करने निकले हैं।