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१०. जीवन नौका हे मेरे भगवन्! अनन्तानन्त गुण युक्त यह भव्य आत्मा जीवन रूपी नौका की स्वामी है भवसागर के महासमुद्र में जीवन रूपी नौका, बड़े आनन्द से तैर रही हैमंजिलें पार कर रही है, मानव जीवन और उस विराट विश्व के स्वामी के बीच गहरा सम्बन्ध स्थापित हो गया है मानव जीवन प्रभु की सुवास से प्रमुदित हो उठा हैहे मेरे भगवन्अनन्त की आराधना में लीन मेरा जीवन आत्म-स्थिति में तल्लीन हो जाए, यही एक अन्तर्भावना हैमैं स्वयं आत्मलीन हूँ हर्ष विभोर हूँ हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! मुझे अनन्त में लीन कर दो - इस संसार की सुध-बुध से अलीन कर दो अपने में तल्लीन कर दो। हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!