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झाकलिऊन्दस्वामिन्त्रागागात्ममंवान्त्रा। . ॥कर्षय नाकर्षय प्रात्ममंवान् रक्षरा परमवादिछिद्ममसमी॥ ॥हितंऊरु ऊरुस्वाहा ।।
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ચિત્ર ૨૪૩ ભક્તામર કાવ્ય ૩૬ પૃષ્ઠ ૪૪૭ -
यत्र २४४ भताभ२ सय १४४४७
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