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॥ प्रायुषः प्रपश्रित कर भूत पिशाचा ॥ स्कंद अपस्मार· ग्रहगृहीत स्प बंधे ॥ तत्क्षणा
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भित्र ४५ उव० यंत्र २४ ५४ १४६
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|| दुर्भगा नारीणां सौभाग्य करोति ॥
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चित्र ५० उ० यंत्र २५ पृष्ट १४९
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