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भवन में मुनि भगवंत स्थिरता कर अपनी संयम आराधना के साथ-साथ विशिष्ट ज्ञानाभ्यास, ध्यान, स्वाध्याय आदि का योग प्राप्त करते हैं. साधु भगवंतो के उच्चस्तरीय अध्ययन के लिए अपने-अपने क्षेत्र के विद्वान पंडितजनों का विशिष्ट प्रबन्ध किया गया है. यह ज्ञान, ध्यान तथा आराधना के लिये विद्यानगरी काशी के सदृश सिद्ध हो सके इस हेतु प्रयास किये गए हैं.
(४) मुमुक्षु कुटीर : यात्रालुओं, जिज्ञासुओं, ज्ञान पिपासुओं के लिए दस मुमुक्षु कुटीरों का निर्माण किया गया है. हर खण्ड जीवन यापन सम्बन्धी प्राथमिक सुविधाओं से सम्पन्न है. संस्था के नियमानुसार विद्यार्थी सुव्यवस्थित रूप से यहाँ उच्चस्तरीय ज्ञानाभ्यास, प्राचीन एवं अर्वाचीन जैन साहित्य का परिचय एवं संशोधन तथा मुनिजनों से तत्त्वज्ञान प्राप्त कर सकते हैं.
(५) अल्पाहार गृह : तीर्थ में पधारनेवाले श्रावकों, दर्शनार्थियों, मुमुक्षुओं, विद्वानों एवं यात्रियों की सुविधा हेतु जैन सिद्धान्तों के अनुरूप सात्विक उपहार उपलब्ध कराने की अल्पाहार गृह में सुन्दर व्यवस्था है.
(६) श्रुत सरिता : इस बुक स्टाल में उचित मूल्य पर उत्कृष्ट जैन साहित्य, आराधना सामग्री, धार्मिक उपकरण, कैसेट्स एवं सी.डी. आदि उपलब्ध किये जाते हैं. यहीं पर एस.टी.डी टेलीफोन बूथ भी है.
(७) नगी धर्मशाला व भोजनशाला : इस तीर्थ में आनेवाले यात्रियों एवं महेमानों को ठहरने के लिए आधुनिक सुविधा संपन्न नई धर्मशाला एवं अतिथिभवन का निर्माण किया गया है. धर्मशाला में वातानुकुलित एवं सामान्य मिलकर ४५ कमरे उपलब्ध है. सामूहिक संघ एवं यात्रियों के भोजन सुविधा हेतु सुविशाल व सुंदर भोजनशाला बनायी गई है. प्रकृति की गोद में शांत और सुरम्य वातावरण में इस तीर्थ का वर्ष भर में हजारों यात्री लाभ लेते हैं.
(८) विश्वमैत्री धाम बोरीज, गांधीनगर : योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरिजी महाराज की साधनास्थली बोरीजतीर्थ का पुनरुद्धार परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा एवं शुभाशीर्वाद से श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र की शाखा विश्वमैत्री धाम के तत्त्वावधान में नवनिर्मित १०८ फीट उँचे विशालतम महालय में ८१.२५ ईंच के पद्मासनस्थ श्री वर्द्धमान स्वामी प्रभु प्रतिष्ठित किये गये हैं. ज्ञातव्य हो कि वर्तमान मन्दिर में इसी स्थान पर जमीन में से निकली भगवान महावीरस्वामी आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज द्वारा हुई थी. नवीन मन्दिर स्थापत्य एवं शिल्प दोनों ही दृष्टि से दर्शनीय है. यहाँ पर भविष्य में एक कसौटी पत्थर की देवकुलिका के भी पुनःस्थापन की योजना है जो पश्चिम बंगाल के जगत शेठ फतेहसिंह गेलडा द्वारा १८वीं सदी में निर्मापित किये गये कसौटी मन्दिर के पुनरुद्धार स्वरूप है. वर्तमान में इसे जैनसंघ की ऐतिहासिक धरोहर माना जाता है. निस्संदेह इससे इस परिसर में पूर्व व पश्चिम के जैनशिल्प का अभूतपूर्व संगम होगा.
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