________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पणय-ससंभम-पत्थिव-नह-मणि-माणिक्क-पडिअ-पडिमस्स; तुह वयण-पहरण-धरा, सीहं कुद्धपि न गणंति. १३ ससि-धवल-दंत-मूसलं, दीह-करुल्लाल-वुड्ढि-उच्छाहं; महु-पिंग-नयणजुअलं, स-सलिल-नवजल-हराऽऽरावं. १४ भीमं महा-गइंदं, अच्चा-ऽऽसन्नं पि ते नवि गणंति; जे तुम्ह चलण-जुअलं, मुणि-वई! तुंगं समल्लीणा. १५ समरम्मि तिक्ख-खग्गा-ऽभिग्घाय पविद्ध-उद्धृय-कबंधे; कुंत-विणिभिन्न-करि-कलह-मुक्क-सिक्कार-पउरंमि. १६ निज्जिय दप्पुद्धर-रिउ-नरिंद-निवहा भडा जसं धवलं; पावंति पाव-पसमिण! पास-जिण! तुह प्पभावेण. १७ रोग-जल-जलण-विस-हर,-चोराऽरि-मइंद-गय-रण-भयाई; पास-जिण-नाम-संकित्तणेण पसमंति सव्वाइं. १८ एवं महा-भय-हरं, पास-जिणिंदस्स संथवमुआरं; भविय- णा-ऽऽणंद-यरं, कल्लाण-परंपर-निहाणं. १९ राय भय-जक्ख-रक्खस-कुसुमिण-दुस्सउण-रिक्ख-पीडासु संझासु दोसु पंथे, उवसग्गे तह य रयणीसु. २० जो पढइ जो अ निसुणई, ताणं कइणो य माणतुंगरस; पासो पावं पसमेउ, सयल भुवणऽच्चिअ चलणो. २१
For Private And Personal Use Only