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तुह समत्ते लद्धे, चिंतामणि-कप्पपायवब्भहिए; पावंति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं इय संथुओ महायस! भत्तिब्भर-निब्भरेण-हियएण; ता देव दिज्ज बोहिं, भवे भवे पास जिणचंद!
संतिकरं स्तोत्र - ३ संतिकरं संतिजिणं, जगसरणं जय सिरिई दायारं; समरामि भत्त-पालग-निव्वाणी-गरूड-कय सेवं ॐस नमो विप्पोसहि-पत्ताणं,-संतिसामि-पायाणं; झौं-स्वाहा-मंतेणं, सव्वासिव-दुरिअ-हरणाणं ॐ संति नमुक्कारो, खेलोसहिमाई-लद्धि-पत्ताणं; सौं ह्रीं नमो सव्वोसहि-पत्ताणं च देइसिरिं वाणी तिहुअण-सामिणि, सिरिदेवी जक्खरायगणि पिडगा; गह-दिसिपाल-सुरिंदा, सयावि रक्खंतु जिणभत्ते ४ रक्खंतु ममं रोहिणी, पन्नत्ती बज्जसिंखला य सया; वज्जंकुसि चक्केसरि, नरदत्ता काली महाकाली गोरी तह गंधारी, महजाला माणवि अ वईट्टा; अच्छुत्ता माणसिया, महामाणसियाउ देवीओ
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