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प्रणवाक्षर पहेलो पभणीजे, माया बीज श्रवण निसुणीजे, श्रीमति शोभा संभवे ए देवह धुरि अरिहंत नमीजे, विनय पहु उवज्झाय थुणीजे, इणे मंत्रे गोयम नमो ए परघर वसतां कांइ करीजे देशदेशांतर कांइ भमीजे, कवणकाज आयास करो प्रह उठी गोयम समरी जे, काजसमग्गह ततखिण सीझे, नवनिधि विलसे तास घरे चउदहसे बारोत्तर वस्से, गोयम गणधर केवळ दीवसे. खंभनयर प्रभु पास पसाए.. कियो कवित उपगार परो आदिमंगळ एह भणीजे,
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