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५४. पंडित - मरण
मृत्यु के भय से रहित होकर और मृत्यु की तैयारी के साथ अगर कोई मरे तो उसे पंडित - मरण कहते हैं । जीवन में ऐसी प्राप्ति करनी चाहिए कि मृत्यु अमर बन जाय । धन के लिए जिंदगी को बेचना नहीं चाहिए । यह मनुष्य भव विशिष्ट प्राप्ति के लिए मिला है । वह धायमाता के समान है । धायमाता बालक को खिलाती - पिलाती है, मगर अंतर से विरक्त रहती है, क्योंकि बालक पराया है ।
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धनदौलत, बंगला, कुटुंब - परिवार सभी यहीं छोड़कर जाना है । दूसरा जन्म लेना हमारे हाथ की बात नहीं है । लेकिन जाना हमारे हाथ में है । किसीके शाप से या आशीर्वाद से हमारा जीवन न तो छोटा हो सकता है न लंबा | आयुष्य जितना बाँधा है उतना भोगना ही पड़ता है ।
मृत्यु के समय पंडित - मरणवाले व्यक्ति के सुख और शांति दूर नहीं होते हैं । क्योंकि उन्होंने तो पाँचों इन्द्रियों को अपने काबू में रखकर प्राप्त साधनों का उपयोग लोक-कल्याण के कार्यो में किया है । पंडित-मरण होने के बाद जनम-मरण के फेरे मिट जाते हैं ।
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