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४६. त्याग ज्यों-ज्यों त्याग में ज्ञान का रंग भरता जाता है, त्यों-त्यों त्याग का रंग अधिक पक्का होता जाता है । त्याग और सादगी में सच्चा आनंद है । हर एक वस्तु समझकर करने से आनंद प्राप्त होता है । मैं एक हूँ' ये शब्द ममत्व को, मोह को दूर करने के लिए हैं, दीनता लाने के लिये नहीं ।।
जिस साधु के पास कुछ नहीं है उसके पास सर्वस्व है, पर जिस संसारी के पास सब कुछ है, वास्तव में उसके पास कुछ भी नहीं है । एक आत्मवादी है, दूसरा भौतिकवादी । यहाँ से जायेंगे तब आत्मा का कमाया हुआ ही साथ में आयेगा । शेष सभी भौतिक वस्तुएँ यहीं छोड़कर जायेंगे । इसलिए जो वस्तु साथ जानेवाली हो, ऐसी ही वस्तु अभी कमानी चाहिए । यही कारण है कि साधु प्रति क्षण ज्ञान की साधना ही करते हैं ।
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