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प्रेरक की कलम से
परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब की सेवा में रहकर तथा उनके प्रवचनों का पान करते हुए मैंने बार-बार यह महसूस किया है कि संसार को देखने-परखने की पूज्य गुरुदेव की अपनी अलग एक आध्यात्मिक है । यहाँ तक कि लौकिक पदार्थों एवं विषयों को भी आध्यात्मिकता के आलोक में देखना ही उन्हें अधिक प्रिय है । आध्यात्मिक रुचि और दृष्टिकोण का यह अन्तर उनकी सौम्य - शान्त प्रकृति और संयमशील जीवन की ही एक सहज परिणति है, जिसकी झलक उनके प्रवचनों में भी प्रायः सर्वत्र परिलक्षित होती है । उनकी पारदर्शी दृष्टि उनको सदैव पदार्थ के अन्तर में झांकने तथा उसके वास्तविक स्वरूप को उद्घाटित करने के लिए प्रेरित- सी करती प्रतीत होती है । परिणामतः साधारण - सा विषय भी उनके पारसस्पर्श से कुन्दन बन जाता है ।
अपने तलस्पर्शी ज्ञान, दीर्घ अनुभव और चिन्तन-मनन के परिणाम - स्वरूप पूज्य आचार्यश्री न केवल शास्त्रीय एवं दार्शनिक विविध विषयों तथा सिद्धांतों का निरूपण - प्रतिपादन करते हैं, अपितु जीवन के गूढ़ रहस्यों पर भी प्रकाश डालते हैं । इस संदर्भ में एक उल्लेखनीय तथ्य यह है कि विषयवस्तु की गंभीरता के बावजूद उनकी भाषा एवं शैली में कहीं कोई दुरूहता या किलष्टता दिखाई नहीं देती । गूढ़ से गूढ़ विषय के प्रतिपादन में भी उन्होंने जिस सरल - सुबोध एवं व्यावहारिक शैली को अपनाया है, वह अपने आप में बेजोड़ है । यही कारण है कि पूज्य आचार्यश्री के प्रवचन सबके आकर्षण के केन्द्र तथा जन-जन के प्रेरणास्रोत बन सके हैं
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प्रस्तुत संकलन में दो वाक्यों के बीच कई बार संबंध का अभाव सा प्रतीत हो सकता है । किंतु गौर करने पर संबंध प्राप्त हो सकेगा । ये वाक्य समुद्र में उठती लहरों के समान हैं। हर लहर यूँ तो अपने आप में भिन्न प्रतीत होती है, परंतु समुद्र को ख्याल में लाते ही उनकी संबद्धता स्पष्ट हो जाती है ।
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