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प्रकाशकीय वक्तव्य
गृहस्थ-जीवन में करणीय छः प्रमुख दैनिक कृत्यों में आत्मजागृति की दृष्टि से व्याख्यान - श्रवण का अपना एक विशेष महत्त्व है । परन्तु आपाधापी के आज के युग में ऐसे भाग्यशाली सद्गृहस्थों की संख्या अधिक नहीं है जिनको कि व्याख्यान या प्रवचन सुनने का नियमित समय और सुअवसर मिल पाता हो । अधिकतर वे जीवन की अपनी भागदौड़ में ही इतने उलझे रहते हैं कि चाहते हुए भी वे, उनका लाभ नहीं उठा पाते । जनसामान्य की इस विवशता को ध्यान में रखकर ही इस संस्था ने संत- मुनिराजों के प्रेरणास्पद एवं पठनीय प्रवचनों को पुस्तकाकार में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है, जिससे कि जिज्ञासु कोई भी पाठक सुविधानुसार उनको पढ़कर लाभ उठा सके ।
परमपूज्य आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज एक समर्थ आचार्य ही नहीं; गहन चिन्तक और प्रभावशाली प्रवचनकार भी हैं । प्रस्तुत पुस्तक में उन्हीं के चुने हुए कुछ प्रवचनों का, उनके विद्वान प्रशिष्यरत्न पूज्य मुनिराज श्री देवेन्द्रसागरजी महाराज द्वारा संकलित सार प्रकाशित किया जा रहा है । आशा है, संस्था का यह प्रयास अपने उद्देश्य में अवश्य सफल होगा और सराहा जायगा ।
इस पुस्तक के प्रकाशन में बैंगलोर निवासी उदारमना संघवी और ओटमलजी वेदमूथा ने अमूल्य आर्थिक सहायता प्रदान कर अपने धर्म प्रेम का जो परिचय दिया है, संस्था उसके लिए उनका हार्दिक आभार मानती है.
प्रकाशक अरुणोदय फाउण्डेशन
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