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१२. दिव्य पाथेय
यात्रा में खाने की चीजों की- पाथेय की आवश्यकता रहती है, उसी प्रकार लंबी यात्रा के लिए निकली हुई इस आत्मा को भी पाथेय की आवश्यकता होती है । प्रतिदिन सुबह हम जागेंगे ही, ऐसा कुछ निश्चित नहीं है । एक न एक दिन तो आँखें बंद हो ही जानेवाली हैं ।
संसार के मोह के चक्कर में हम तत्त्वज्ञान की बातों को भूल जाते हैं । 'आज' तो अच्छी तरह से बीतनेवाली है, लेकिन हमें तो 'कल' के लिए सोचना है । आत्मा तो सदा 'प्रवासी' ही है वह कहीं भी 'वासी' अर्थात् स्थिर होकर रहनेवाली नहीं है, अतः उसको तो पाथेय की बहुत आवश्यकता रहती है ।
एकांत में बैठकर आत्मा को पूछना है कि "तुझे जाना है ? अगर 'हाँ' तो जाने की तैयारी कर ।”
यहीं छोड़कर जाने की वस्तुओं को इकट्ठा करने के पीछे जीवन को बरबाद नहीं करना है । जाते समय जो साथ न आयें उन वस्तुओं को इकट्ठा करने की जरूरत ही क्या ? जगत में कंचन, कुटुंब, काया और काम ये चार वस्तुएँ दिखाई पड़ती हैं, किंतु इन चारों में से एक भी वस्तु साथ आनेवाली नहीं है । दान,
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