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जैसे ग्रहों की शान्ति दान करने से होती है, । वैसे ही परिग्रह से मुक्ति पाने का उपाय भी ।
अतिरिक्त का दान या त्याग करना ही है । इसलिए अपनी आवश्यकता के अनुसार ही परिग्रह करने का नियम ले लेना चाहिए और आवश्यकता से अधिक का नियमपूर्वक त्याग कर देना चाहिए, क्योंकि आवश्यकताओं की पूर्ति जितना तो जीवन में मिलता ही है ।
जिस प्रकार समुद्र में यात्रा करते समय नाव में कम से कम भार रखा जाता है, अन्यथा नाव के डूब जाने का खतरा बना रहता है, इसी प्रकार भव-समुद्र को पार करने के लिए भी इस जीवन-नौका को अति परिग्रह के बोझ से बचाना चाहिए, नहीं तो जन्म-जन्मान्तर तक इस संसार-समुद्र में ही भटकते रहना पड़ेगा।
साधु का काम सहन करने का है । श्रावक का काम देव, गुरु और धर्म की रक्षा करना है । श्रावक तो साधु का किला है । जगत को अभय देनेवाले, साधुओं की रक्षा करनेवाले श्रावक एक प्रकार से उनको 'अभयदान देते हैं।
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