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६. श्रम और साधना
पुणिया
प्रतिदिन दो आने कमानेवाले श्रावक की विचारधारा में एक दिन अंतर आया । कारण ढूँढ़ने पर उसको पता चला कि बिना माँगकर लाये हुए एक उपले पर आज उसके भोजन का थोड़ा भाग बनाया गया है । इस चोरी की वजह से उसके हृदय में प्रभु का नाम रोज की तरह नहीं आया । इसलिए उसने उस दिन उपवास किया और भोजन नहीं लिया |
आज हम जब प्रभु का स्मरण करते हैं, तब न करने जैसे विचार मन में आ जाते हैं और मन अन्य बातों में भटक जाता है । इस वजह से चित्त की प्रसन्नता नहीं रहती । इसका एक कारण हमारा अन्न भी है । जैसा अन्न वैसे विचार । आहार के साथ विचार और आचार संबंधित हैं । इसी वजह से हमारे जीवन से श्रम और साधना चले गये हैं । इन दोनों के बिना शुद्धि की संभावना ही कहाँ ?
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* न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम इस शरीर के हो । यह शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है, और इसी में मिल जायेगा, परन्तु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्यों रोते हो ?
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