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७९. साधना का रहस्य
लोहे और तांबे को पारसमणि का स्पर्श होते ही वे सुवर्ण बन जाते हैं, उसी प्रकार आत्मा को भी आत्मज्ञान प्राप्त होते ही वह अमर बन जाती है । जीवनभर 'स्व' का ही दर्शन करना है । प्रत्येक क्रिया में आत्मा को याद करना है । जीवन को घोंट - घोंट कर अंतर में से आत्मजागृति को प्राप्त करना है । हर एक क्रिया आत्मजागृति के साथ होगी तो संसार की क्रियाएँ भी आत्मा को ऊर्ध्वगामी बनायेंगी और धर्म का सच्चा रहस्य तो आत्मा को मोक्ष दिलाना ही है ।
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मृत्यु में ही जीवन की परिणति रही है । अंधकार में जैसे प्रकाश छिपा हुआ है, वैसे मृत्यु में ही अमृत छिपा हुआ है । मृत्यु को समझ लेने के बाद जीवन को जीने में बहुत ही आनंद आता है ।
जीवन गंदगी देखने के लिए नहीं, वरन् जगत के उद्यानों को देखने के लिए है । प्रत्येक व्यक्ति दूसरों के सद्गुण देखने चाहि ए, दुर्गुण या दोष नहीं । सद्गुणों को देखते-देखते हमारे अंदर भी सद्गुणों की वृद्धि होती जायेगी । दुर्गुण देखने से दुर्गुणों में वृद्धि होगी और मैत्री - प्रेम के बदले राग-द्वेष बढ़ेगे । पाखंडी लोग तो भगवान में भी दोष ही देखते हैं ।
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