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७३. नमन सूर्य कहता है, 'मैंने अंधकार को देखा ही नहीं है । कारण कि सूर्य का अस्तित्व ही प्रकाशमय है । हमारे अंदर जब ज्ञन-दशा प्रगट होगी तब हमारे अंदर वैरभाव नहीं रहेगा । आंतरिक शत्रुओं को जो जीत ले उसका नाम महावीर । भगवान महावीर योगियों के आधार हैं । उनको योगी नमन करते हैं । घड़ा अगर पानी से भर जाना चाहता है तो उसे झुकना पड़ेगा । उसी प्रकार जो जीवनघट में अमृत भरना चाहता है, उसे भगवान को नमन अवश्य करना होगा । इसी तरह जिन्हें ज्ञान प्राप्त करना है, उन्हें सर्वप्रथम अपने हृदय को कोमल बनाना होगा । मिट्टी को रौंदने से उसमें से सुंदर आकार बना सकते हैं, उसी प्रकार ज्ञनीजन भी हमें नमन की तालीम देकर हमारे जीवन को सुंदर बनाते हैं । नदी के किनारे पर रहे हुए पेड़ भी बाढ़ के पानी को नमन करके अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं । लेकिन जो अक्कड़ पेड़ नमते नहीं हैं वे उखड़ जाते हैं । नमन करने से आत्मा नम्र-विनम्र बनती है । और इस प्रकार नम्र या लघु बनकर ही वह महान् बनती है । वह नमन के रहस्यरूप प्रभुता को पा लेती है- लघुता में प्रभुताई है ।
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