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दूसरे विश्वयुध्द में ढाई करोड़ लोग बेमौत मारे गए, कोई पाँच करोड़ से अधिक घायल हुए, अरबों की सम्पत्ति नष्ट हुई, बेशुमार घरबार उजड़े अनेकों को आजीविका खोनी पड़ी. युध्द का इतना भयावह दुष्परिणाम अभी सन् १९४६ में हम देख चुके हैं, फिर भी कितनी गहरी अज्ञानता है कि लोग युध्द में जीवन की परिकल्पना करते हैं. निश्चय ही अब विवेक अनिवार्य है.
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