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अब अपनत्व और सद्भावना जैसे शब्द मात्र धर्मग्रंथों व शब्दकोशों में समाहित हैं. इन तथाकथित नेताओं और समाजसेवकों के अपने- अपने स्थापित हित इतिहास को दूषित बना देंगे, यदि सभी में परस्पर सद्भावना का जन्म नहीं हुआ तो सर्वत्र हड्डियों के ढेर लग जाएँगे. अब सद्भावना ही विकल्प है नष्ट होती मानवसभ्यता का.
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