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अहसास तो प्रारम्भ से ही सभी को हो आया था. लब्धिचन्द' के लुभावने नाम से परिचितों में प्रिय बने प्रेमचन्द ने शुरू से ही माता के बतलाए आदर्श जीवन - सूत्रों को बराबर थाम लिया. रामस्वरूपसिंहजी के जाने के बाद कमर कसकर जीने तथा हर परिस्थिति को सहजता से झेलने की मानसिकता तो भवानीदेवी ने बना ही डाली थी. माता भवानीदेवी की इस विचारधारा ने बालक प्रेमचन्द को गहराई से प्रभावित किया. शैशव से ही प्रेमचन्द के कोमल कदम जीवन की कठोर डगर पर चलने के आदी हो गये. निर्भीकता और सन्मार्ग पर निरन्तर संघर्ष जीवन के ये दोनों बहुमूल्य सूत्र, जो
जन्म के साथ ही प्रेमचन्द को माता से विरासत में मिले थे, आज तक की आचार्य पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की सफल जीवन यात्रा में महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुए हैं.
शिक्षा और संस्कार
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माँ के दिशा- निर्देशन में आगे बढ़े होनहार प्रेमचन्द छ: वर्ष की उम्र में ज्ञानार्जन के लिए अजीमगंज के 'श्री रायबहादूरबुधसिंह प्राथमिक विद्यालय में दाखिल किये गये. छट्ठी कक्षा तक की प्राथमिक शिक्षा प्रेमचन्द ने यहीं पर अर्जित की. विद्याभ्यास के क्षेत्र में प्रेमचन्द कभी सन्तुष्ट नहीं हुए. अध्ययन के प्रति अपार लगन, अथक परिश्रम और अद्भुत स्मरण शक्ति ने प्रेमचन्द का नाम
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