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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir था। वहां बैठा हुवा एक फकीर मन में सोचता है-इस सम्राट के पास आज कुछ मांग लू । कुछ लेना हें तो बादशाह के पास ही लूंगा, भिकारी के पास से नहीं फकीर वही है जो भय रहीत होता है और खुदा के ऊपर पूरा विश्वास रखता है । फकीर फीकर का फाका करे, बोले वचन गंभीर । जिस ने दिया तन को वही देगा कफन को । बादशाह बन्दगी कर रहा था । अन्त में वह प्रार्थना करता है - " हे खुदा तेरी कृपा से मुझे अच्छी औलाद मिले, और एक किल्ला मैं जित छ, तो मेरे भंडार में कुछ भी कमी नहीं रहेगी । फकीर ने बादशाह की प्रार्थना सुनी। बादशाह बाहर आया । खैरात बांट दी गयी सोना मोहर बाँट दी। फकीर को भी बाँटा गया । लेकिन फकीर ने मोहर फेंक दी। इस बात से बादशाह को बडी तोहीन हुई । उस फकीर को महल में बुलाया गया, और माहर फेंक देने की वजह पूछ गयी । फकीर ने कहा- मैंने मन में निश्चय किया था कुछ लूँगातो बादशाह से लूंगा - भिकारी से नहीं । तुम खुदा के पास औलाद, किल्ला माँग रहे थे। मैंने सोचा तुम भी भीकारी हो । तुम होलसेल में माँगते हो मैं रीटेल में माँगता हूँ । परमात्मा से कुछ माँगना यह परमात्मा के ऊपर अविश्वास करना है । परमात्मा की कृपासे सब कुछ मिलता है । हमारे मन में विश्वास होना चाहिए । For Private And Personal Use Only
SR No.008727
Book TitlePadmaparag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherShantilal Mohanlal Shah
Publication Year1979
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
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