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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्माने कहा-,"नहीं वहाँ मुझे शांति नहीं मिलेंगी क्यों कि आदमी अभी चंद्रलोक में भी जाने का प्रयास कर रहा है । देवोने सोचा परमात्मा को हिमालय के ऊपर लिया जाय । परमात्माने कहा-, "वहाँ भी तो तेनसिंग जैसे गिर्यारोहक आ जाओंगे।" देवोंने सोंचा परमात्मा को पाताल में लिया जाय।" परमात्माने कहा, " ड्रीलींग कर के आदमी वहाँ भी आजाओगा । देवोने विचार किया और कहा, आप मानव के अंतर हृदय में जावो । परमात्माने कहा-, "यह जगह तो वहुत सुरक्षित है।" कहने का मतलब आदमी सुख को संसार में खोज रहा है लेकिन उस को अंतर मन को देखने के लिए फुरसत ही नहीं है। आत्मा में परमात्मा है। परमात्मा बनने के लिए कौन सी प्रक्रिया हैं ? प्रवचन से जीवन का परिचय होता है। जीवन पवित्र बनता है । पवित्रता से जीवन की पूर्णता साकार बनती हैं। प्रवचन से विचार जागृत होंगे, और विचार आचार को जागृत करेंगे। परमात्मा का मार्गदर्शन अपूर्व है । इस मार्गदर्शन से संतान भी संत बनता है । पापी परमेश्वर बनता है । जैन साधु हमेशा प्रसन्न होते है । संपूर्णतः त्यागमय भूमिका में जीवन की आराधना करते है । ओ तो सिर्फ स्नेह-प्रेम के भूखे होते हैं । आप के प्रेम ने हमें यहाँ खींच कर लाया है। आपका For Private And Personal Use Only
SR No.008727
Book TitlePadmaparag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherShantilal Mohanlal Shah
Publication Year1979
Total Pages39
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size3 MB
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