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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org है. श्रवण विना मनन भी निष्फल हैं. आचार्य श्री की वाणी का हमारे मनन और चिन्तन का आधार वने तभी उसका समुचित लाभ हमें मिल सकेगा. भाग्यशाली हैं वे श्रावक जो इस शक्तिगर्भा वैखरी के साक्षी हैं. जिन्होंने अपने स्वयं के कानों से इस सत्य का उद्घोष सुना है, समझने का प्रयत्न किया है तथा उपासना और साधना का लाभ उठाया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानव मस्तिष्क की सीमा होती है. सुने हुए का कुछ भाग ही मनन हो पाता है और मनन का कुछ अंश ही आचरण बनता है. इसलिये यह स्तुत्य प्रयत्न है कि परम पूज्य आचार्य श्री के प्रवचनों को प्रकाशित किया जाए, जिससे जिन्होंने यह प्रवचन सुना है तथा जिन्होंने नहीं सुना है, दोनों ही समान रूप से लाभान्वित हो सकें. यह प्रकाशित प्रवचन पढ़ा जाए, उस पर चिन्तन किया जाए और वह हमारे आचरण का अंग बने यही आकांक्षा है. पाली में आचार्य श्री के दिये प्रवचन सरल, सुबोध, हृदयग्राही तथा सर्वकल्याणकारी हैं. इनका प्रकाशन पुनीत संकल्प एवं प्रयास है. प्रवचन गागर में सागर हैं. अथाह परम शांत और गंभीर आशा है, श्रावक सामर्थ्यानुसार डुबकी लगाकर मोती तथा अन्य रत्न चुनने का प्रयत्न करेंगे. पुरूषार्थ सहित इस सागर मन्थन से दुर्लभ रत्नों को प्राप्त करेंगे, यही शुभेच्छा है. पर्युषण पर्व १९८४ प्राध्यापक, मैं अकिंचन प्राणी, महाराज साहव के प्रवचन पर कुछ कहने एवं लिखने का अधिकारी नहीं हूँ. मैं तो स्वयं अथाह समुद्र के किनारे बैठ कर कभी तरंगों तथा गहराइयों का मात्र अवलोकन करता हूं. " संताय वरिष्ठाय पद्मसागराय तुभ्यं नमः” For Private And Personal Use Only डॉ. माधवानन्द तिवारी जोधपुर विश्वविद्यालय जोधपुर
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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