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जीवन में सदाचार जब 'स्व' से 'सर्व' तक व्यापक बन जाती है, तब सिद्धि की साधिका बनती है, साध की व्याख्या विद्वानों ने इस प्रकार की है :सानोति स्वपरकार्याणीति साधुः ।। [जो अपना और दूसरों का कार्यकलाप सिद्ध करता है, वह साधु है.] आहार शुद्धि से विचारों में पवित्रता : अपना और दूसरों का कल्याण करने की भावना जिस प्रकार सदाचार का अंग है, उसी प्रकार सात्त्विक भोजन और सात्त्विक वेषभूषा भी सदाचार का अंग है.
आहार शुद्धि का विचारों की पवित्रता से सम्बन्ध बताया जाता है : जैसा खाये अन्न, वैसा होवे मन ।। जैसे हम पदार्थ खायेंगे, वैसा ही हमारा मन बनेगा अर्थात् वैसे ही हमारे विचार बनेंगे. इसीलिए रात्रि भोजन के त्याग का विधान करके आहार को मर्यादित करने का प्रयास किया गया है. पुराणों में तो यहाँ तक लिखा है
अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिर मुच्यते । अन्नं मांस समं प्रोक्तं, मार्कण्डेयमहर्षिणा ।। [मार्कण्डेय नामक महर्षि के कथनानुसार सूर्य के अस्त होने पर पानी रुधिर कहा जाता है और अन्न मांस के समान.]
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाय तो समस्त बीमारियों की जड़ है - रात्रि भोजन! बम्बई के एक बहुत बड़े डॉक्टर ने इस बात की पुष्टि की थी. उनका कहना था कि रात को थक कर घर आये, फिर ९ या १० बजे भोजन किया और विश्राम के लिए लेट गये कि नींद आ गई. श्रम के अभाव में आंतों को ही भोजन पचाने का काम करना पड़ेगा. फिर भोजन के दो घण्टे बाद पेट में जल पहुंचना चाहिये, जो पाचन के लिए जरूरी है, सो नहीं पहुंच पायेगा. पानी की कमी से गेस्टिक ट्रबल हो जायगी, जो अलग-अलग प्रकार से वायु की विकृति उत्पन्न करेगी, उसी से ब्लडप्रेशर, हाइड्रोलिक एसिड, क्लोरिक एसिड आदि पैदा होते हैं, इनके अतिरिक्त सूर्यास्त के बाद अनेक खतरनाक कीटाणु वातावरण में फैल जाते हैं, जो भोजन के द्वारा पेट में पहुँच कर रोग पैदा करते हैं.
इससे विपरीत सूर्यास्त से पहले भोजन करने पर कीटाणु रहित वातावरण होता है, शाकाहारी भोजन पांच घंटों में पच जाता है और मांसाहारी भोजन दस घण्टों में, शाकाहारी भोजन शाम को चार-पांच बजे कर लिया जाय तो नौ-दस बजे तक उसको पानी भी पर्याप्त मिल जाता है और पाचन भी भली भांति हो जाता है. इससे कोई बीमारी पैदा नहीं होती, थोड़े दिन इसका प्रयोग करके देखिये कि इससे आपका स्वास्थ्य कैसा रहता है. शरीर कितना हल्का-फुल्का
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