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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन में सदाचार मन की निर्मलता : प्रभु महावीर ने प्रवचनों के माध्यम से मोक्षमार्ग का परिचय दिया है. बताया है कि जीवन की पूर्णता का साधन मन की निर्मलता है. __ लालटेन की लौ से प्रकाश होता है, परन्तु चिमनी (काँच की हंडिया) यदि धुएं से काली हो चुकी हो तो लौ को आप कितनी भी तेज कर दें, वह वस्तुएं दिखाने में समर्थ नहीं होगी. इसी प्रकार आत्मा में ज्ञान की लौ है-अनन्त प्रकाश है, परन्तु मन की चिमनी पर विषय-कषाय का धुआँ है-कर्मों की कालिमा है, इसलिए वह मुक्तिमार्ग दिखाने में असमर्थ है. मन की निर्मलता के तीन साधन हैं- सत्य, सदाचार और समर्पण. सत्य धर्म का जनक है, क्योंकि उसी से हमें वास्तविकता व कर्तव्य का बोध होता है. सदाचार धर्म का पोषक है, क्योंकि सदाचारी का ही लोग अनुसरण करते हैं, कोरे उपदेशक का नहीं तीसरा साधन है- समर्पण, जो अहंकार को नष्ट करके हमें विनीत बनाता है. इन तीनों में सदाचार का महत्त्व सबसे अधिक है.आज इसी पर विशेष विचार करेंगे. आचार्य उमास्वातिने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ तत्त्वार्थ सूत्र में “सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः।।" [सम्यग्दर्शन, सम्यग, ज्ञान और सम्यक् चारित्र- ये तीनों मोक्षमार्ग हैं.] ऐसा लिखकर चारित्र की महत्ता को प्रतिपादित किया है. वह चारित्र ही सदाचार है. जिस देश में सदाचार का अभाव होता है, वह कभी विकास नहीं कर सकता-उन्नत नहीं हो सकता-आगे नहीं बढ़ सकता. चारित्र का महत्त्व : किसी इंग्लिश विचारक ने ठीक ही लिखा है - "यदि धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया और चरित्र गया तो सब कुछ गया! सदाचार जीवन की आधार शिला है. यदि वह कमजोर रही तो उस पर जीवन की इमारत खड़ी नहीं रह सकेगी. यदि खड़ी रही भी तो चिरस्थायी नहीं हो सकेगी. प्राचीन काल के सदाचारी मनुष्यों की तुलना में वर्तमान काल के मनुष्यों का व्यवहार देखने पर हमें बहुत निराश होना पड़ता है. वर्तमान के आधार पर ही अपना भविष्य बनता है, इसलिए वर्तमान यदि दूषित है तो भविष्य उज्ज्वल कैसे हो सकता है? व्यक्ति से ही समाज बनता है. यदि व्यक्ति दुराचारी है तो समाज कैसे सदाचारी हो सकता है? For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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