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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म और आधुनिक विज्ञान धर्म आत्म विज्ञान है : आधुनिक युग में धर्म की स्थिति विचित्र हो गई है. जहाँ पुरानी पीढ़ी के लोग पुराने विश्वासों और मान्यताओं से चिपके हुए हैं, वहाँ नयी पीढ़ी के लोग धर्म को अन्धविश्वास और पिछड़ेपन का चिह्न मानते हैं. पुरानी रूढ़ियां चली आ रहीं हैं किन्तु उन पर आस्था समाप्त हो गयी है. धर्म अब हमारे जीवन का वैसा प्रेरणा स्रोत नहीं रहा जैसा हजारों वर्षों पूर्व था. धर्म के प्रति जो दृष्टिकोण बदला, उसका प्रारंभ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के उदय के साथ हुआ. विज्ञान की खोजों के कारण धर्म की अनेक मान्यताएँ नष्ट हो गयी एवं अन्धविश्वासों का युग बीत गया. जीवन और जगत की प्रत्येक वस्तु को तर्क और परीक्षा की कसौटी पर परख कर स्वीकार करने की परंपरा चल पड़ी. वस्तुतः विज्ञान के कारण धर्म को आघात तो लगा किन्तु इस आघात से धर्म मिटा नहीं वरन् अन्धविश्वासों और मिथ्या मान्यताओं से मुक्त होकर अपने सच्चे रूप में निखर आया. अनेक उच्च कोटि के वैज्ञानिक धर्म को मानते रहे हैं. सर आर्थर एडिंग्टन, सर जेम्स जीन्स और सर अल्बर्ट आईन्स्टाइन आदि के प्रति भी विशेष आदर है. । भारत में धर्म का नवोन्मेष उक्त आध्यात्मिक साधकों और उनके द्वारा चलाये गये आन्दोलन में दीख पड़ता है, किन्तु ये आन्दोलन थोड़े लोगों को ही प्रभावित कर पा रहे हैं. पुरानी रूढ़ियाँ ज्यों-की-त्यों बनी हुई हैं, इनके कारण धर्म का मूलतत्व ही जनसाधारण की दृष्टि से ओझल है. हिन्दू धर्म संघ-बद्ध धर्म नहीं है, इसलिये धर्म के द्वारा बड़े पैमाने पर सुधार का कार्य नहीं हो पाता. यहाँ जीवन में अभाव और विषमताएँ इतनी अधिक हैं कि जीवन की मौलिक आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो पाती. अतः इन दिनों सारा ध्यान अभावों और असुविधाओं को दूर करने में केन्द्रित है किन्तु उच्च चरित्र के अभाव में किसी भी प्रकार की सामूहिक चेष्टाएँ अधिक दूर तक सफल नहीं हो पाती. कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफीम बताया. इससे उनका आशय यही प्रतीत होता है कि जिस प्रकार अफीम का नशा मनुष्य की चेतना को शिथिल कर उसे निष्क्रिय बना देता है उसी प्रकार धर्म से प्राप्त होने वाली शांति और सांत्वना मनुष्य को शांत और निष्क्रिय बनाकर उसे बहुमुखी संघर्ष से विमुख कर देती है. मार्क्स शोषण और विषमता से क्षुब्ध थे; वे समाज में शीघ्र परिवर्तन लाना चाहते थे; धर्म उन्हें इसमें बाधक प्रतीत हुआ. मार्क्स को धर्म के अवगुण दिखलाई पड़े. वस्तुतः साम्यवादी देशों में क्रमशः धर्म की ओर धर्म के पराभव का कारण विज्ञान नहीं वरन् विज्ञान से उत्पन्न हुई औद्योगिक सभ्यता है. औद्योगीकरण के द्वारा सुख-सुविधा के साधनों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई और भोग के प्रति आत्यन्तिक प्रवृत्ति उत्पन्न हुई. अचेतन मन भोगवाद For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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