SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० जीवन दृष्टि करने के लिए ढोल नहीं पीटना पड़ता है. विचार में और आचार में वीतरागता आये तो आप सबका प्रेम सम्पादन कर सकते हैं, तभी आपकी साधना सुगन्धमयी और प्रेम-मय बनेगी. स्व से सर्व प्राणि मात्र तक हमारी मित्रता होनी चाहिये, ‘मित्ति में सव्व भएसु, वेरं मज्जं न केणइ' - जगत् में किसी के साथ मेरा वैर नहीं है, ऐसी भावना होनी जाहिये. धर्म की वफादारी : आप अपनी पूर्ण ईमानदारी के साथ धर्म के प्रति वफादार रहें. चाहे आप किसी भी धर्म को मानने वाले हों, आखिर परम्परा में धर्म तो एक ही मिलेगा. गाय चाहे काली हो, चाहे लाल हो, चाहे पीली या चितकबरी हो, दूध तो उसका सफेद ही मिलेगा. आप पर सम्प्रदाय का कोई भी लेबल क्यों न हो परन्तु धर्म तो वही जिसमें अहिंसा, संयम और तप हो, और वह हर धर्म में मिलेगा. इन्द्रियों पर संयम और इच्छाओं पर नियन्त्रण, यह मूल तत्व हर धर्म में मिलेगा. उसी व्यक्ति को तपस्वी माना गया जो अपनी आत्मा पर विजय प्राप्त कर ले. अपने मनोविकारों का दमन कर ले. यहीं से धर्म का जन्म होता है. भले ही सम्प्रदाय कोई भी हो, पेकिंग कोई भी हो मुझे उससे मतलब नहीं. आप अपने हृदय पर हाथ रखकर कहें-क्या आप अपने धर्म के प्रति वफादार हैं? धर्म की वफादारी तो गुरू गोविन्दसिंह के दोनों युवान पुत्रों ने निभाई. वे शेर की सन्तान थी. दाढ़ी-मूछे भी नहीं आई थी. १६ वर्ष और १८ वर्ष की उम्र थी उनकी. बड़े खूबसूरत थे. राजपुत्र थे. और जब उनकों मुगलों द्वारा षडयन्त्र-पूर्वक पकड़ा गया और उनसे कहा गया-अगर तुम धर्म परिवर्तन कर लो तो तुम्हारी शादी शहजादी से करवा दी जायेगी और तुमको कश्मीर और पंजाव का राज्य दे देंगे. उन्हें साम्राज्य का प्रलोभन दिया गया पर उन शेर की सन्तानों ने क्या उत्तर दिया? सिंह पुत्रों ने थूक दिया सन्देश वाहकों पर और कह दिया - चले जाओ यहाँ से. हम इस तरह की बात सुनना भी पसन्द नहीं करते. प्रलोभन से काम नहीं बना तो भय दिखाया गया. ईनाम में सजा-ए-मौत का हुक्म दिया गया. मौत भी कैसी? कि जीवित उनको दीवारों में चुनवा दिया जाय. खड्डा करके नाक तक दीवार चुनवा दी गई उनसे फिर कहा गया-राजकुमार तुम अभी तो उगते हुए सूर्य हो, दुनिया भी नहीं देखी है. गुलाव खिलने से पहले मुरझा जाय तो वड़ा अफसोस होता है. अभी भी सोच लो अच्छी तरह से, अभी भी समय है. कहा मान लोगे तो जिन्दगी भर ऐश करोगे. उन लड़कों ने जवाब दिया - जो सोचना था, सोच लिया. तुम अपना कार्य चालू रखो. धर्म के रक्षण के लिए अपना जीवन अर्पण करना, ये हमारे लिए सौभाग्य की बात है. धर्म परिवर्तन का कोई शब्द हमें सुनना भी पसन्द नहीं. जव सिंह की सन्ताने धर्म के प्रति वफादारी से नहीं हटी तो उन्हें ईंटों की दीवार में चुनवा दिया गया. प्राण चले गये उनके धर्म के लिए, धर्म की वफादारी के लिए अपने प्राणों का For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy