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जीवन दृष्टि
१६
द्वेष की अग्नि में जलते हुए कुछ व्यक्तियों ने उपाश्रय की ओर हैण्डग्रेनेड फेंका और वह लुढकता हुआ गुरू भगवन्त के पास आया. गुरु भगवन्त जरा भी विचलित नहीं हुए. वम लुढकता हुआ गुरु भगवन्त के पास आकर रुक गया पर फटा नहीं आश्चर्य ! घोर आश्चर्य ! देखने वाले स्तब्ध रह गयें विरोधियों ने पुनः प्रयास किया. पर वह भी निष्फल गया. वम पड़ोस की एक दीवार के पास जाकर फटा वम फिर फेंका गया. पर वह गुरू भगवन्त का कुछ नहीं बिगाड़ सका. अपने तीन प्रयासों को निष्फल जाते देखकर उन्होंने सोचा कोई नया उपाय किया जाये. उन्होंने तीन चार हजार आदमियों के साथ उपाश्रय पर हमला बोल दिया. विरोधियों ने अपने आदमियों से कह दिया सभी को जिन्दा जला दो और सामान को लूट लो पर दैवयोग इतना प्रवल कि उनका यह हमला भी निष्फल रहा. संयोग से एक सिख रेजिमेन्ट वहाँ से निकल रही थी. सिख रेजिमेन्ट ने आततायियों को उपाश्रय पर हमला करते देखा तो तुरन्त सहायता को पहुंच गई और थोड़ी देर में ही आततायियों को खदेड़ कर भगा दिया. गुरू महाराज के पास सिख रेजिमेन्ट का केप्टन आया और विनती की कि आप लोग हमारी वख्तर वंद गाडियों में बैठ जाइये. हम आपको सुरक्षित सीमा पार करा देंगे. आचार्य भगवन्त ने मना कर दिया कि हम गाड़ियों में नहीं बैठेंगे. केप्टन ने कहा- भले ही आप गाड़ियों में नहीं बैठे, ठीक है आप पैदल चलिये. हम आपके साथ रहेंगे और निरापद आपको सीमा तक पहुंचाने के बाद ही जायेंगे. कोई उपाय न देखकर गुरू महाराज ने श्रावकों के रक्षण के लिए वहाँ से विहार करना स्वीकार किया.
इस प्रकार दल बनाकर केप्टन ने संपूर्ण संघ को अपने घेरे में ले लिया. चारों तरफ से सिख जवानों ने मोर्चा बंदी कर दी. बीच में गुरु महाराज आचार्य विजयवल्लभसूरिजी महाराज साधु साध्वियों और श्रावकों के साथ पैदल वहाँ से निकले. रावी तट पर पहुंचे तो उन पर आक्रमण हुआ मगर केप्टन ने संघ पर आंच नहीं आने दी और हमलावरों से सुरक्षित निकाल लिया. रावी नदी को पारकर सभी अमृतसर पहुंचे. तीस चालीस माइल का रोज पैदल विहार कर जव वे अमृतसर पहुंचे तो पाँवो में छाले पड़ चुके थे. कइयों के पैर सूज गये थे. रास्ते में आहार पानी का कोई प्रबन्ध नहीं था. घोर यंत्रणाओं को पाकर जब वे अमृतसर पहुंचे तो लाखों की संख्या में लोग उनके स्वागत के लिए इन्तजार कर रहे थे.
मेरे कहने का मतलब कि ऐसी विषम परिस्थिति में भी उनमें आचार की दृढता कैसी रही ? यही हमें देखना है. आचार शून्य जीवन का कोई मूल्य नहीं. आचार प्रधान विचार का ही मूल्य होता है. वल्लभसूरिजी महाराज के आचार में इतनी विपत्तियों के बावजूद भी जरा सी भी शिथिलता नहीं आई जिसका परिणाम कि वे सकुशल भारत पहुंचने में सफल रहे.
आज लोग कहते हैं, - महाराज समय बदल गया है. मैं कहता हूँ, समय नहीं वदला, आपके विचार बदल गये हैं. क्या भगवान महावीर से कुछ छुपा हुआ था ? वे सर्वज्ञ थे परन्तु उन्होंने कभी छूट नहीं दी. आज अगर हम ट्रेन या प्लेन का उपयोग शुरु कर दे तो हमने आचार
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