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जीवन व्यवहार नागरिक बनते थे. राष्ट्र का निर्माण और प्रजा की सेवा करने वाले होते थे और स्वयं की आत्मा की उपासना भी करते थे.
आज वो सब रहा ही कहाँ? आज तो मोडर्न एज्युकेशन प्रणाली इतनी दुषित हो चुकी है कि तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन् जैसे महान शिक्षा शास्त्री ने दुखी होकर, आज की शिक्षा प्रणाली पर प्रहार करते हुए लिखा- NO Education But Character. ऐसी शिक्षा से कोई मतलब नहीं जो चरित्र का निर्माण न कर सके. जीवन के अंदर नैतिक उत्थान न कर सके. पहले ऐसी व्यवस्था थी कि हजारों ऋषि-मुनियों के जो आश्रम थे, वहीं से पढ़ कर विद्यार्थी बाहर निकलते थे. वे अपनी संस्कृति, अपने संस्कार के लिए जीवन अर्पण करने वाले होते थे. हमारे यहाँ उस समय शिक्षा का लक्ष्य रखा गया- “सा विद्या या विमुक्तये."
मुझे ऐसा ज्ञान चाहिये जो वासना से, पाप से, अनीति से मेरी आत्मा को मुक्त कर सके. मेरी आत्मा में गुणों का सृजन कर सके. राष्ट्र, समाज और प्रजा के लिए मैं कर्तव्य, बुद्धि
और प्रेरणा प्राप्त कर सकू. आज जितने भी स्कूल-कॉलेज हैं वहाँ से व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त तो होता है, परन्तु उस व्यवहारिक क्षेत्र में धर्म का अनुशासन चाहिये. ये धर्म का अनुशासन वहाँ नहीं सिखाया जाता है, जिसका ये परिणाम कि आज सारा ही विश्व अशान्ति से घिरा हुआ है,
एक बार स्वामी विवेकानन्द किसी कॉलेज में प्रवचन देने के लिए गये. मॉडर्न एज्युकेशन के उन विद्यार्थियों से स्वामीजी ने पूछा- जीवन में तुम क्या बनना चाहते हो?
छात्रों में से किसी ने डॉक्टर, किसी ने वकील, किसी ने इंजीनियर बनने का लक्ष्य बताया. स्वामी विवेकानन्द ने कहा- बड़े दुःख की बात है आप में से किसी को अपना लक्ष्य ही नहीं मालूम. कोई भी विद्यार्थी यह नहीं कह सकता कि मैं मानवता को प्राप्त करूँगा. प्राणिमात्र का कल्याण करूंगा.
आज की शिक्षा प्राणाली का व्यक्ति स्व की परिधि तक ही सीमित हो गया है, स्व की परिधि में ही घिरा है. सर्व तक जाने का संकल्प ही नहीं, लक्ष्य ही नहीं है. आज सरकार सभी चीजों का राष्ट्रीयकरण कर रही है, मैं कहता हूँ कि हमारी इस शिक्षा प्रणाली का सबसे पहले भारतीयकरण करो. आज की मॉडर्न एज्युकेशन जिसमें सिर्फ शब्द ज्ञान मिलेगा, भौतिक ज्ञान मिलेगा किन्तु उस आध्यात्मिक चेतना का लक्ष्य नहीं मिलेगा. आत्मा का पोषण करने वाला वह तत्व नहीं मिलेगा. वह सम्यक् ज्ञान नहीं मिलेगा. जिससे राष्ट्र का नैतिक उद्धार हो सके.
पहले के जमाने में जो शिक्षा प्रणाली थी, उसका लक्ष्य था मोक्ष प्राप्त करना. सत्य और सदाचार के मार्ग पर चलकर समाज और राष्ट्र का कल्याण करना, प्राणिमात्र का कल्याण करना. किन्तु अंग्रेजों ने आकर कुछ ऐसा किया कि हम अपनी संस्कृति को भूल गये. लार्ड
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