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तिमिर आवृत नयनों में दिव्यता और विशदता प्राप्त होगी। मेरे अंतर नयनों में चंद्र समान म ज्योति जगमगा उठेगी। इस स्नेह भरी चन्द्र सम ज्योति में मैं आत्म समदर्शित्व गुण को वरूँगा आत्म समज्ञप्तृत्व गुण को धरूँगा और आत्म समवर्तित्व गुण का आचरण करूँगा प्रियतम! मेरे अन्तर-आवरण दूर हो। हृदय-मंदिर विशुद्ध और मृदु हों। गण-रत्न प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त हो। इसीलिए तो अंजन शलाका करता हूँ,
३२. प्रतिष्ठा
जीवितेश्वर नवकार !
जनम जनम के अथक और अविरत प्रयासों द्वारा कठिन कर्मों की कठिनतम एवं बेढंगी चट्टानों को काट कर मैंने यह मंजुल मन-मंदिर तैयार किया है। इस में देव की तरह तुम्हारी प्रतिष्ठा करनी है। तुम्हें यह मन-मन्दिर पसन्द आजाएँ
हे नवकार महान
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