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५. अनुमति
हे भवभंजन दीनानाथ ! मैं सिर्फ तुम्हारा गुणगान करने आया हूँ। प्रेम के गीत लेकर, श्रद्धा के स्वर और भक्ति की लय से सजे गीत ।। मुझे गीत गुंजन की गुणानुवाद करके की अनुमति दो। नाथ इस भरे-पूरे संसार में और किसी प्रकार की योग्यता....क्षमता मझ में नहीं है। प्रत्यतः मेरे निरुपयोगी, निर्बल प्राण सदा-सर्वदा तुम्हारे ही गीत गुजारित करते रहे ऐसी शक्ति मुझे प्रदान कर। हृदय-कुंज में तिमिराच्छन्न रात्रि सदशक नीरवता है। जीवन के लहलहाते खेत खलिहान मायूस और उदासीन है तुम्हारे वियोग में . . . । मन के हाट-हाट और हवेली वीरान है। अरे ओ! प्राणेश्वर! जगति के मंदिर में आरती की दीपशिखा प्रज्वलित हो उठी है। सर्वत्र हँसी-खुशी और उष्मा का समा बंध गया है। ऐसे में मुझे तुम्हारे गीत गानेकी अनुमति दे दे। सिंदूरी उषा की गले लिपटती किरण मालाओं से ओत-प्रोत प्रभात बेला में तुम्हारे मंगल गीत गाने की अनुमति दे। बस इतनी सी भिक्षा दे दे। दे दे मेरे प्रभ, अब और निराश न कर।
हे नवकार महान
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