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नहीं रखते । लेकिन जब हम प्राणों को तुच्छ समझकर 'नवकार' का जाप आदि कोई भी कार्य करने के लिये सदा तत्पर रहें तो निःसंदेह विघ्नों पर विजय प्राप्त करते हैं और अपने कार्य में सफल बन जाते हैं । * सच पूछे तो माँगने का अधिकार नवकार को है, हमें नहीं । कारण हम पर उसके आज तक के उपकारों की कोई सीमा नहीं है । ऐसे में इन उपकारी भगवंतों के उपकारों क यथासंभव बदला चुकाने के बजाय STE 'बदले में इतना देना' इस प्रकार कहते रहना निहायत कृतज्ञता के अभाव का द्योतक है ।
* 'नवकार' में मन जोड़ना यह पर्वत पर चढने जैसा है, जब कि विषयों में आसक्त बनना पर्वत से गिरने जैसा ।
यद्यपि पर्वत पर चढना कठिन है,
किंतु चढने के बाद शुद्ध वायु मंडल आदि की प्राप्ति मनको सदा आनन्द देती है । ठीक उसी प्रकार 'नवकार' में मन जोडना कठिन अवश्य है । परन्तु जोडने के पश्चात् जो अद्भुत और अनुभूत आनन्द अनिर्वचनीय होता है । उसकी तुलना में विश्व की समस्त ऋद्धि-सिद्धियां तुच्छ. तुच्छतम; तुच्छकर हैं !!
हे नवकार महान
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