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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 मार सकता । उसी प्रकार श्री 'नवकार' की साधना में स्थिर बने सत्त्व गुणवंत आत्मा को कषाय कदाचित ही मात कर सकते हैं । * नवकार की शरण में जाओ और अन्तर्मन हो सुबह शाम प्रार्थना करो कि हे नाथ मुझे सद्बुद्धि दो । मेरी पाप बुद्धि का नाश करो । यदि छह महीने तक लगातार ऐसी प्रार्थता करने में आये तो बहुत से दोष अपने आप मिटते नजर आऐंगे ही। * डाक्टर के पास जाने के पश्चात् अपना दर्द छिपाने से दर्दी निरोगी नहीं बन सकता । उसी प्रकार 'नवकार' के समक्ष अपने सब पाप शुद्ध हृदय से प्रकट न कर दें तब तक वह पूर्ण निष्पाप नहीं बन सकता । * गाड़ी में बैठते समय गठड़ी माथे पर उठानी पडती है; किन्तु गाडी में बैठने के तदुपरांत भी यदि उठाये रक्खे तो हमारी वह निरी मूर्खता समझी जाती है । उसी प्रकार 'नवकार' की शरण स्वीकार करने के बावजूद भी अपना भार माथे पर रखे रहें तो भला वह क्या गिना जायेगा ? * माँ.... माँ की रट लगाने पर भी यदि माँ सुने नहीं तब जिस प्रकार बालक स्वाभाविक रूप से रोने लगता है । उसी प्रकार श्री नवकार के भाव मिलन की शंखना में से ही विरह हे नवकार महान १०३ For Private And Personal Use Only AOY
SR No.008712
Book TitleHe Navkar Mahan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherPadmasagarsuriji
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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