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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में सौदेबाजी शुरू हो जाती है। उपलब्धि व अनुपलब्धि की गणना शुरू हो जाती है और इससे तनाव अभिवृद्धि ग्रहण करते हैं । दोहरा व्यक्तित्व भी तनावों की संरचना करता है । दोहरा व्यक्तित्व, अध्यात्म से जुड़ने के पश्चात् दोहरा नहीं रहकर एकत्व का, अखंडता का स्वरूप ले लेता है। अध्यात्म की विशुद्धता, दिव्यता एवं अनन्यता नष्ट न हो, यह जागरूकता नितांत आवश्यक है। यदि वह जागरूकता नहीं रही तो संतुलन की स्थापना नहीं हो सकती है । तब दृष्टिकोण की संकुचितता भी कायम रहेगी। संकल्प तब सध नहीं सकते हैं | जब विकल्पों की ऊहापोह में व्यक्ति अपने को उलझा कर मंत्रणा पाता है । जब जीवन में प्रवंचनाओं का अतिरेक होने लगता है। विडम्बनाएं आ जाती है । जीवन की सार्थकता समाप्त हो जाती है । तब अध्यात्म की स्मृति होती है, तब का यह जागना विलम्ब से जागना होता है, फिर साधना दुष्कर होती है। ___ पुनः स्पष्ट करना चाहता हूँ कि असंतुलन, तनाव एवं विभिन्न प्रकार की कर्कशताएं जो दिखाई देती है, वे आध्यात्मिक शून्य भौतिक दृष्टिकोण की उपज है। अंतर बाह्य तनाव मुक्ति एवं सफलता अर्जित करने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी चिंतनशैली अध्यात्म से जोड़े। अध्यात्म की साधना, अध्यात्म की खोज व्यक्ति को अपने स्तर से ऊंचा उठाती है | ज्यों ज्यों वह अध्यात्म की गहराई में डुबकी लगाता है, भौतिकता-व्यर्थ लगने लगती है । एकांततः भौतिकता मे आकण्ठ डूबकर तनावों को बढ़ाकर अपनी शक्ति को नष्ट नहीं करना चाहिए । जितना हमारा मन अध्यात्मोमुखी होगा, जीवन उतना ही सुखी बनेगा। अध्यात्म की उपेक्षा : तनाव का कारण - 185 For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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