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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देखते मंजिल तक पहुंच जाता है। उत्तराध्ययनसूत्र के तेईसवें अध्ययन में केशी श्रमण एवं गणधर गौतम के बीच में इस बारे में जो सार्थक चर्चाएं हुई वे सचमुच अत्युपयोगी है । यह ठीक है कि मन चारों तरफ दौड़ने वाले साहसी दुष्ट अश्व के समान है पर जिसके हाथों में वैराग्य और विवेक की लगाम है, वह कभी भी भटक नहीं सकता । मेरे मानस मंच पर किसी कवि की कुछ पंक्तियाँ अनायास प्रस्तुत लेखन के क्षणों में उभर आई है - विराग मन को आत्मा से, अध्यात्म से जोड़ता है। आत्मा में कोई कलुषता नहीं होती । वास्तव में आत्मा ही ऐसी माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने अस्तित्व को जान सकते हैं | आत्मा से जुड़ा हुआ व्यक्तित्व ही आदर्श स्थापित कर सकता है । आत्मा से जुड़े मन का विश्लेषण ही सर्वथा योग्य होता हैं । वही मन उज्ज्वल है जिसमें जिज्ञासा है और है जिज्ञासा के समाधान की ललक । विरक्त अवस्था में जिज्ञासा के समाधान खोजने के अधिक अवसर होते है । वही मन विवेकी है जो सहिष्णुता को स्वीकार करता है और एक विरागी व्यक्तित्व से अधिक सहिष्णु कौन हो सकता है ? यह उपलब्धि पाई जा सकती है अभ्यास, लगन, मेहनत और समर्पण से । जैसे किसी विशेष पथ पर चलकर ही लक्ष्य पाया जाता है, उसी प्रकार मन को विशुद्ध बनाने के लिए विराग ही श्रेष्ठ मार्ग है । विराग का अर्थ - केवल वेष परिवर्तन मात्र नहीं है, अपितु आंतरिक वृत्तियों का रूपांतरण है। अंतरशुद्धि में बाधा उपस्थित करनेवाले मन के छः दोष होते हैं - विषाद, निर्दय विचार, व्यर्थ कल्पना जाल, भटकाव, अपवित्र विचार, द्वेष या अनिष्ट चिंतन । विषाद का अतिरिक्त मनुष्य को कुंद कर देता है। यदि सामान्य व्यवहार से अधिक विषाद है तो वह विमोह को व्यक्त करता है - अथवा उस विषाद के मूल में जाकर अपने किसी स्वार्थ की प्रतिपूर्ति की भावना को प्रकट करता है । निर्दय विचार, निरंतर विचारों की वह श्रृंखला है जो किसीके प्रति पल-प्रतिपल अशुभ सोच को और अधिक तीव्र बनाती जाती है । उस विचार-श्रृंखला में शुभ विचारों को लगातार निरस्त किया जाता है। वह विचार श्रृंखला एक दुर्विचार रूप हो जाती है और उसका अध्यात्म का आधार : अ 175 For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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