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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 14 - अध्यात्म : अभय का द्वार www.kobatirth.org जी वन को आध्यत्मिक तरीके से जीनें से किसी प्रकार का भय पैदा नहीं होता, पर जब जीवन में अध्यात्म की उपेक्षा होने लगती है तो उसमें असंगतियों का प्रवेश होने लगता है और कई प्रकार के भय भी उत्पन्न हो जाते हैं । तब जीवन में संशय भी उभरता है, तब जीवन के अर्थ में कई अनर्थ भी आ जाते है । मनुष्य की इसी भय भावना का लाभ कई लोग, कई तरीकों से लेते है । धर्म के संदर्भ में विभिन्न प्रकार से पाप, पुण्य की व्याख्या कर मनुष्य के अधिकांश व्यवहार को पाप की श्रेणी में रखकर उसे भय से ग्रस्त कर अनेक कर्मकाण्ड सुझाकर अपना उल्लू सीधा करने वालों की एक बड़ी जमात है । वैसे यह एक सर्वथा सत्य है कि अध्यात्म और धर्म से कटकर, प्रमादों के घेरे में आ कर ही मनुष्य भय की सर्जना करता है । आगम सूत्र है सव्व ओ पमत्तस्स भयं, सव्वओ अप्पमत्तस्स नत्थि भयं ! 106 अध्यात्म के झरोखे से Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रमादी को सब प्रकार से भय, अप्रमादी को किसी प्रकार का भय नहीं । प्रमाद को यदि व्यक्ति सीमित रखता है तो कोई भय अथवा हलचल नही होती । जितनी भी हिंसाएं, चोरियां आदि हो रही है उसके पीछे व्यक्ति की अध्यात्म For Private And Personal Use Only
SR No.008701
Book TitleAdhyatma Ke Zarokhe Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherAshtmangal Foundation
Publication Year2003
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Spiritual
File Size11 MB
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