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अध्यात्म की सम्पूर्ण योजना, परिकल्पना, व्यवस्था का उद्देश्य है आत्मा, चेतना का आमूल परिवर्तन हो । सर्वभूत मैत्री का प्रायोगिक विधान हो । अध्यात्म जीवन का मूलभूत आधार है । अध्यात्म के अभाव में जीवन का कोई मूल्य और महत्त्व नहीं है।
आत्मदर्शन के लिए अध्यात्म की आवश्यकता है और आत्मा का दर्शन ही, अध्ययन ही -आत्मदर्शन है। आज के तथाकथित विकास के इस भौतिकतावादी युग में व्यक्ति आत्मचिंतन, आत्मबोध को नकार रहा है, यही एक कारण है कि वह विविध समस्याओं से संत्रस्त है । भौतिक साधन भी जीवन में आवश्यक होते हैं इस तथ्य को एकांततः नकारा नहीं जा सकता पर उन्हें ही सबकुछ मान जानकर उन्हीं में अपने आपको झोंक देना. स्वयं के साथ स्वयं के द्वारा अराजकतापूर्ण दृष्टिकोण है । इस तथ्य को नजरंदाज नहीं करना चाहिए कि भौतिक साधन सुविधा दे सकते हैं पर शांति नहीं दे सकते । सच्चे शाश्वत सुख और शान्ति के लिए व्यक्ति को अपने जीवन में धर्म एवं अध्यात्म की साधनाआराधना को प्रमुखता देनी ही पड़ेगी । तनावमुक्ति एवं आत्मोन्नयन के लिए अध्यात्म का औचित्य असंदिग्ध है।
अध्यात्म का क्षेत्र स्वानुभूति, निजानुभूति का क्षेत्र है । इस अनुभूति के लिए भेद विज्ञान की प्रक्रिया आवश्यक है । अनादि काल से संश्लिष्ट, जीव एवं पुद्गल द्रव्य की संयोगी पर्याय में जब तक शुद्ध आत्मा के ज्ञायक स्वभाव का पृथक से अनुभव नहीं होता, तब तक अध्यात्म के पर्यावरण में जीव का प्रवेश नहीं हो सकता । अतः आध्यात्मिक विकास का प्रथम घटक आत्मबोध है । यही इस विकास की नींव है। ___आत्मा ही एकमेव साध्य है । आत्मा की पहचान न सिर्फ आत्मा की पहचान है, किन्तु आत्मेतर की पहचान भी है । धर्म, दर्शन, अध्यात्म सब इसी उत्स से प्रवाहित हुआ है
भूमिका -9
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