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दर्शन योग
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प्रतिक्रमण-पावश्यक सूत्र में कहा है:'प्ररिहन्ती महदेवो जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुयो। जिणपण्णत्तं तत्तं इय सम्मतं मए गहियं ।।'
अरिहन्त मेरे देव हैं सु-साधु मेरे गुरु हैं और जिनेन्द्रों द्वारा प्रतिपादित तत्त्व मेरा धर्म है, ऐसे देव-गुरु-धर्म से युक्त जो सम्यक्त्व है, उसे मैंने जीवनपर्यत के लिये ग्रहण किया है।
____ कुछ प्राचार्यों ने प्रात्मा की सत्ता को दृढ़तापूर्वक स्वीकार करने को सम्यग्दर्शन कहा है। इस प्रकार व्याख्या अलग अलग होने पर भी सबका लक्ष्य एक है और वह है जड़ से भिन्न चेतन की अनुभूति होना। वस्तुत: जिसने अात्मा और अनात्मा के भेद को जान लिया है, वही सच्चा सम्यक्त्वी है । सम्यग्दर्शन के प्राप्त होने पर व्यक्ति को पाप से भय और परमात्मा से प्रीति हो जाती है। वस्तु का जैसा स्वरूप हो, उसे वैसा ही समझना और मानना सम्यग्दर्शन है ।
अकबर ने बीरबल से कहा, "मैंने एक स्वप्न देखा।" बीरबल-"कैसा स्वप्न जहांपनाह ?"
अकबर-"हम दोनों जंगल में घूमने निकले। वहां पर दो कुण्ड थे, एक अमृत से भरा और दूसरा विष्टा से भरा हुअा था। हम दोनों उनमें झाँकने लगे, तभी मैं अमृत के कुण्ड में गिर पड़ा और तुम विष्टा के कुण्ड में गिर गये।"
सुनकर सभी सभासद हँसने लगे। तभी बीरबल बोल उठा, "हुजूर मैंने भी कुछ ऐसा ही स्वप्न देखा था, पर मैंने इसके आगे भी कुछ देखा है।
अकबर-"तुमने क्या देखा ?'
बीरबल- 'मैंने देखा कि मैं आपको चाट रहा था और आप मुझे चाट रहे थे।"
सम्यगदर्शनी का जीवन बीरबल के जैसा होता है, जो संसार का विषयुक्त (मिथ्यात्वपूर्ण) वातावरण में रहकर भी सम्यक्त्वरूपी अमृतरस का पान करता है और मिथ्यादर्शनी का जीवन बादशाह के जैसा होता
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